Thursday, June 25, 2015

नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया (मीराजी)

नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया

कैसे दिन थे कैसी रातें,कैसी बातें-घातें थी 
मन बालक है पहले प्यार का सुन्दर सपना भूल गया 

सूझ-बूझ की बात नहीं है मनमोहन है मस्ताना 
लहर लहर से जा सर पटका सागर गहरा भूल गया 

अपनी बीती जग बीती है जब से दिल ने जान लिया
हँसते हँसते जीवन बीता रोना धोना भूल गया

अँधिआरे से एक किरन ने झाँक के देखा, शरमाई
धुँध सी छब तो याद रही कैसा था चेहरा भूल गया

हँसी हँसी में खेल खेल में बात की बात में रंग गया
दिल भी होते होते आख़िर घाव का रिसना भूल गया

एक नज़र की एक ही पल की बात है डोरी साँसों की
एक नज़र का नूर मिटा जब एक पल बीता भूल गया

जिस को देखो उस के दिल में शिकवा है तो इतना है
हमें तो सब कुछ याद रहा पर हम को ज़माना भूल गया

कोई कहे ये किस ने कहा था कह दो जो कुछ जी में है
“मीराजी” कह कर पछताया और फिर कहना भूल गया

(मीराजी)

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