रस्म-ए-उल्फ़त को निभाए तो निभाए कैसे
हर तरफ आग है दामन को बचाए कैसे
दिल की राहों में ऊठते हैं जो दुनिया वालें
कोई कह दे कि वो दीवार गिराए कैसे
दर्द में डूबे हुए नग़में हजारों हैं मगर
साज़-ए-दिल टूट गया हो तो सुनाए कैसे
बोझ होता जो ग़मों का तो ऊठा भी लेते
जिन्दगी बोज़ बनी हो तो ऊठाए कैसे
गीतकार : नक़्श ल्यालपुरी, गायक : लता मंगेशकर, संगीतकार : मदन मोहन, चित्रपट : दिल की राहें (1973)
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