गया हूँ मैं कहाँ खो ये कभी तो पूछता होगा,
कभी तन्हाइयों में दिल मुझे भी ढूंढता होगा.
मुझे जंगल समझ कर काटना आसान है लेकिन,
करोगे क्या कभी जब पर्वतों से सामना होगा.
तुम्हारा झूठ सारी ज़िन्दगी तुमको रुलाएगा,
मुझे एहसास करके जब तुम्हें सच बोलना होगा.
रखी होंगी किसी की जब कभी मजबूरियाँ गिरवी,
तुम्हारे दिल ने अपने आपसे कुछ तो कहा होगा.
किसी कि चाहतों को आज़माना ही अगर चाहो,
तो तपती धूप के बारे में तुमको सोचना होगा.
सफ़र पे साथ गरचे पंछियों के जा रहे हो तुम,
हुनर घर लौटने का भी उन्हीं से सीखना होगा.
ज़माना देखता है तुमको बस बाहर की नज़रों से,
तुम्हें भीतर की नज़रों से ज़माना देखना होगा.
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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