यार से प्यार की बातों को ग़ज़ल कहते है
ज़ुल्फ़-ओ-रुख़सार की बातों को ग़ज़ल कहते है
प्यार से महकी हुई होशरुबा रातों में
दिल से दिलदार बातों को ग़ज़ल कहते है
कभी इकरार की बातों को बताते है ग़ज़ल
कभी इन्कार की बातों को ग़ज़ल कहते है
दिल जो सौदाई किसी ज़ुल्फ़-ए-गिरह गीर का हो
उस गिरफ़्तार की बातों को ग़ज़ल कहते है
बड़ी कामियाब हुआ करती है दौलत ग़म की
ग़म से दो'चार की बातों को ग़ज़ल कहते है
जिस चमन जर्र में होती हैं दिलों की बातें
उस चमन जर्र की बातों को ग़ज़ल कहते है
कि हैं जिन लोगों ने तन्हाई मे बताई वो लोग
दर-ओ-दीवार की बातों को ग़ज़ल कहते है
कभी वाईज़ के खयालों से छलकती है ग़ज़ल
कभी मयख़्वार की बातों को ग़ज़ल कहते है
हो गया हो जिसे देखे हुए एक अरसा फ़ैसल
उस के दीदार की बातों को ग़ज़ल कहते है
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