(1)
જતાં ને આવતાં મારે જ રસ્તે,
બની પથ્થર, હું પોતાને નડ્યો છું
(શયદા)
(2)
न जाने क्या सहा है रौशनी ने
चराग़ों से बग़ावत कर रही है
- दीक्षित दनकौरी
(3)
کسے پانے کی خواہش ہے کہ ساجدؔ
میں رفتہ رفتہ خود کو کھو رہا ہوں
किसे पाने की ख़्वाहिश है कि 'साजिद',
मैं रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को खो रहा हूँ
- ऐतबार साजिद
(3)
کسے پانے کی خواہش ہے کہ ساجدؔ
میں رفتہ رفتہ خود کو کھو رہا ہوں
किसे पाने की ख़्वाहिश है कि 'साजिद',
मैं रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को खो रहा हूँ
- ऐतबार साजिद
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