मज़ारिअ मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ मक़्सूर महज़ूफ़ छंद के कुछ ओर उदाहरण, भाग-3
221 2121 1221 212, ગાગાલ ગાલગાલ લગાગાલ ગાલગા
(21)
مجھ کو سمجھ نہ پائی مری زندگی کبھی
آسانیاں مجھی سے تھیں مشکل بھی میں ہی تھا
मुझ को समझ न पाई मेरी ज़िंदगी कभी
आसानियाँ मुझी से थीं मुश्किल भी मैं ही था
- ख़ुशबीर सिंह शाद
(22)
बढ़ते चले गए जो वो मंज़िल को पा गए
मैं पत्थरों से पाँव बचाने में रह गया
بڑھتے چلے گئے جو وہ منزل کو پا گئے
میں پتھروں سے پاؤں بچانے میں رہ گیا
(UMAIR MANZAR)
(23)
નિદ્રાથી એમ ચમકીને જાગી ગયા છો આપ,
મારા ઉપરથી જાણે ભરોસો ઊઠી ગયો
(નઝીર ભાતરી)
(24)
आंखो से टपके ओसे तो जां में नमी रहे,
महके उमीद, दर्द की खेती हरी रहे
(हसन नइम)
(25)
कुदरत ख़ुदा की देखिए पिस्ताने यार में
पैवंद फालसे का लगा है अनार में
(नामालूम)
(22)
बढ़ते चले गए जो वो मंज़िल को पा गए
मैं पत्थरों से पाँव बचाने में रह गया
بڑھتے چلے گئے جو وہ منزل کو پا گئے
میں پتھروں سے پاؤں بچانے میں رہ گیا
(UMAIR MANZAR)
(23)
નિદ્રાથી એમ ચમકીને જાગી ગયા છો આપ,
મારા ઉપરથી જાણે ભરોસો ઊઠી ગયો
(નઝીર ભાતરી)
(24)
आंखो से टपके ओसे तो जां में नमी रहे,
महके उमीद, दर्द की खेती हरी रहे
(हसन नइम)
(25)
कुदरत ख़ुदा की देखिए पिस्ताने यार में
पैवंद फालसे का लगा है अनार में
(नामालूम)
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