इतना नाजुक हैं तो फिर घर से निकलता क्यों है
जिस्म जलता है तो फिर धूप में चलता क्यों हैं।
रात भर यूँ ही फिरा करता हैं आवारा सा
चाँद से इतना कोई पूछे निकलता क्यों है।
तुझ को आता नहीं दुश्वारियां सहने का हुनर
तो मुसाफिर राहे दुश्वार पे चलता क्यों है।
जब तेरे साथ नहीं है कोई रिश्ता मेरा
फिर तुझे देख के दिल मेरा मचलता क्यूँ है।
क्या तुझे आज भी इन्सान की पहचान नहीं
ज़र्फ़ वाला है तो कमज़र्फ से मिलता क्यूँ है।
हम हैं हर हाल में उस शख्स पे क़ुर्बान :सिया:
जाने वो रोज़ नए रंग बदलता क्यों है
सिया सचदेव
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