क़लम से छोड़ दिए कुछ निशान काग़ज़ पर
करेगा याद हमें अब जहान काग़ज़ पर
मिला है जितना तज़ुर्बा हयात से हमको
लिखा है उसको सुखन की ज़ुबान काग़ज़ पर
बहुत हुआ कि हक़ीक़त की छत पे आ जाओ
भरी है तुमने अभी तक उड़ान काग़ज़ पर
यहाँ ग़रीब के हिस्से में झोंपड़ी भी नहीं
कहाँ बंटे थे हज़ारों मकान काग़ज़ पर?
लिखी जो प्यार, मुहब्बत, वफ़ा की बातें तो
उभर के आ गया हिंदोस्तान कागज़ पर
तुम्हारे साथ ने है किस तरह अनमोल किया
कभी कर जाऊंगा सबकुछ बयान काग़ज़ पर
जो दिल में ठान लो अनमोल तो ये मुमकिन है
उतार लाओगे तुम आसमान काग़ज़ पर
- के.पी. अनमोल
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