दिन को दिन रात को मैं रात न लिखने पाऊँ
उनकी कोशिश है कि हालात न लिखने पाऊँ
हिंदू को हिंदू मुसलमान को लिक्खूँ मुस्लिम
कभी इन दोनों को इक साथ न लिखने पाऊँ
बस क़लमबंद किए जाऊँ मैं उनकी हर बात
दिल से जो उठती है वो बात न लिखने पाऊँ
सोच तो लेता हूँ क्या लिखना है, पर लिखते समय
काँपते क्यों है मेरे हाथ, न लिखने पाऊँ
जीत पर उनकी लगा दूँ मैं क़सीदों की झडी
मात को उनकी मगर मात न लिखने पाऊँ
- राजेश रेड्डी
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