(1)
روح سے روح کے مِلنے کو حم مان لے کيسے نِکاح؟
جِسم دو مِلتے ہیں تب روح کو تسلّی حوتی ہے
نہال محتاب
रुह से रुह के मिलने को हम मान ले कैसे निकाह?
जिस्म दो मिलते हैं तब रुह को तसल्ली होती है
(निहाल महताब)
(2)
پینی نگاہ رخ چلے تھے ہر جگہ مگر
پینی نگاہ رخ چلے تھے ہر جگہ مگر
بھولےں تو بھولے خد کے گریباں میں جھاںکنا
نہال محتاب
पैनी निगाह रख चले थे हर जगह मगर,
भूलें तो भूलें ख़ुद के गिरेबाँ में झाँकना
(3)
نہیں رب سے شقایت کوئی اِتناا بس بھروسا ہے
لگے آب حیات مجھے جو بھی اُس نے پروسا ہے
नहीं रब से शिकायत कोई, इतना बस भरोसा है
लगे आबे-हयात मुझे जो भी उसने परोसा है
(4)
یار کے ہجر میں کیا حال ہوا ہے دیکھو
آبپاشی کرے کوئی یہ درخت دل پر
यार के हिज्र में क्या हाल हुआ है देखो,
आबपाशी करे कोई ये दरख़्त-ए-दिल पर
(5)
لکھے اشعر کچھ تو خد کو وہ غالب سمجھ بیٹھے
تجربا کیا تھا جو غیروں کو نابالغ سمجھ بیٹھے؟
लिखे अशआर कुछ तो ख़ुद को वो ग़ालिब समझ बैठे
तजुर्बा क्या था जो ग़ैरों को नाबालिग़ समझ बैठे?
(6)
اس جھان میں جی رہے ہیں ہم تم
حادثه اس سے بڑا کیا ہوگا؟
इस जहान में जी रहे हैं हम तुम,
हादसा इससे बड़ा क्या होगा?
(7)
یقین ہے بندگی کا ہی سِلا ہوگا
صنم تو اس لئے ہم کو ملا ہوگا
यकीन है बंदगी का ही सिला होगा
सनम तू इसलिए हम को मिला होगा
(8)
یار کے حجر میں کیا حال ہوا ہے دیکھو
آبپاشی کرے کوئی یہ درخت دل پر
,यार के हिज्र में क्या हाल हुआ है देखो
आबपाशी करे कोई ये दरख़्त-ए-दिल पर
(हिज्र = वियोग , आबपाशी = पानी छिड़कना, दरख़्त-ए-दिल = दिल रूपी वृक्ष)
(4)
یار کے ہجر میں کیا حال ہوا ہے دیکھو
آبپاشی کرے کوئی یہ درخت دل پر
यार के हिज्र में क्या हाल हुआ है देखो,
आबपाशी करे कोई ये दरख़्त-ए-दिल पर
(5)
لکھے اشعر کچھ تو خد کو وہ غالب سمجھ بیٹھے
تجربا کیا تھا جو غیروں کو نابالغ سمجھ بیٹھے؟
लिखे अशआर कुछ तो ख़ुद को वो ग़ालिब समझ बैठे
तजुर्बा क्या था जो ग़ैरों को नाबालिग़ समझ बैठे?
(6)
اس جھان میں جی رہے ہیں ہم تم
حادثه اس سے بڑا کیا ہوگا؟
इस जहान में जी रहे हैं हम तुम,
हादसा इससे बड़ा क्या होगा?
(7)
یقین ہے بندگی کا ہی سِلا ہوگا
صنم تو اس لئے ہم کو ملا ہوگا
यकीन है बंदगी का ही सिला होगा
सनम तू इसलिए हम को मिला होगा
(8)
یار کے حجر میں کیا حال ہوا ہے دیکھو
آبپاشی کرے کوئی یہ درخت دل پر
,यार के हिज्र में क्या हाल हुआ है देखो
आबपाशी करे कोई ये दरख़्त-ए-दिल पर
(हिज्र = वियोग , आबपाशी = पानी छिड़कना, दरख़्त-ए-दिल = दिल रूपी वृक्ष)