Thursday, July 21, 2022

गुस्से की मूल वजह क्या है? (आचार्य प्रशांत)

पूछा है क्रोध पर कैसे काबू करें? गुस्सा बहुत आता है। गुस्सा इच्छा के न पूरे होने पर आता है। और कोई कारण होता नहीं। आपने कुछ चाहा, आपको मिला नहीं। आप उबल पड़े। जीवन इच्छाओं से जितना संचालित होगा, उतनी संभावना होगी न कि इच्छा पूरी नहीं हो रही है। पचास इच्छाएँ करोगे तो पक्की बात है कि उसमें से तीस तो नहीं ही पूरी होगी। और तीस नहीं पूरी होगी तो फिर कितनी बार गुस्सा आया? तीस बार!

गुस्सा तो सिर्फ उस क्षण में आया जब ये प्रकट हो गया कि इच्छा नहीं पूरी हो रही है। और इच्छा पाली कब कब थी? बड़े लंबे समय से। पाल रहे थे इच्छा को, पाल रहे थे, पाल रहे थे... दिनभर इच्छा को पोषण और प्रोत्साहन दिया। और जब इच्छा को प्रोत्साहन दे रहे थे, तब बड़ा अच्छा अच्छा लगता था, क्योंकि इच्छा वादा होती है कि सुख मिलेगा। जब तुम इच्छा को पनपा रहे थे, और फैला रहे थे तब तो ऐसा लगता था, जैसे जन्नत। और लगता जैसे जन्नत तो और इच्छाएँ बुलाई। आ जाओ, तुम भी आओ, तुम भी आओ। और उसके बाद फिर क्या होना शुरु हुआ? नतीजे आने शुरु हुए।

पहली इच्छा? रद्द, खारिज। लगे उछलने, दीवार को मार रहे हैं, अपना सर फोड़ रहे हैं, जो भी करते हैं। दूसरी इच्छा? खारिज। तीसरी इच्छा? अर्ध पूर्ण। चौथी? अब आप सोच रहे हों ये भी जाएगी, होगी नहीं पूरी। चौथी पूरी हो गई संयोगवश। अब पूरी होते ही आपका क्या हुआ? दो बातें हैं: पहला - ये पूरी हो सकती है तो और भी बहुत सारी पूरी हो सकती हैं। बुलाओ रे सबको बुलाओ। दूसरा: ये पूरी होकर भी पूरी नहीं हुई, अभी भी कुछ बच सा गया है। तो बुलाओ रे और बुलाओ। क्योंकि ये इच्छा भी पूरी होकर वो तो दे नहीं पाई न जो इससे चाहिए था। पूर्ण तृप्ति तो मिली नहीं तो और इच्छाएँ बुलाओ। तो तीन इच्छाएँ जो पूरी नहीं हुई तो क्रोध आया। चौथी जो पूरी हो गई उससे और इच्छाएँ आईं। अब वो जो और इच्छाएँ आईं हैं वो पूरी होंगी नहीं तो और क्रोध को जन्म देंगी।

इच्छा पूरी न हो तो क्रोध को जन्म देती है और इच्छा पूरी हो जाए तो और इच्छाओं को जन्म देती है। इधर कुआँ, उधर खाई। अब गए फँस। बताओ तुम्हारी इच्छाएँ पूरी हों के न हों? पूरी हुई तो भी फँसे, नहीं पूरी हुई तो भी फँसे। तो समाधान फिर एक है, क्या? देख लो कि इच्छा का अर्थ क्या है? दबाओ नहीं इच्छा, समझ लो। उसकी पोल खोल दो। उसकी हकीकत ज़ाहिर कर दो कि ये बात है। ये जो इच्छाएँ हैं ये ऐसे आ रही हैं, ये है खेल सारा। अब उससे मिलेगी आज़ादी। 

क्रोध लक्षण है। क्रोध तुम्हे बताता है कि तुम इच्छाओं के गुलाम हो। क्रोध तुम्हे बताता है कि विवेक नहीं है तुम में। तुम किसी भी चीज़ को अपनी चाहत बना लेते हो। जो चीज़ चाहने लायक नहीं है, उसको चाहत बना दिया और उबलते-उबलते घूम रहे हो तो तुम ही बेवकूफ हो। एक है उबलेला, एक है जलेला। दोनों में काम एक ही हुआ है। गये थे आग पर बैठ गये। एक उबले, एक जले। कोई roast घूम रहा है, कोई fried घूम रहा है। नीचे से आँच आ रही होती है, उपर ढकना लगा है। मतलब समझ रहे हों न? स्थिति अपने आपको ऐसी दी है कि कामनाओं को उत्तेजना मिलती जा रही है और उनकी पूर्ति का साधन नहीं है। उपर से ढकना लगा हुआ है। फिर जब विस्फोट होता है तो यकायक होता है। पूरा फटते हैं। दबाये, दबाये है तो फिर...


प्रश्न: घर पर किसी एक गुस्सा करने वाले से पूरे घर के लिए नर्क बन जाता है। 

उत्तर: क्योंकि उनकी इच्छा ये थी कि ऐसे के साथ रहें। जो नर्क का ही दूत हो, एजेंट हो, उसके साथ रह रहे हो और उसमें सुधार भी नहीं ला रहे तो इसका अर्थ यह है कि तुम खुद  भी नर्क को चुन रहे हो। ऐसे के साथ अगर हो तो तुम्हारा धर्म है कि लग करके उसकी शुद्धि का यत्न करो। उसकी अगर सफाई नहीं होगी तो तुम्हारी गंदगी हो जाएगी। घर में एक बीमार है, उसे संक्रामक बीमारी है, या तो उसको ठीक कर दो या बाकी सबको बीमार होने दो। ऐसा नहीं हो सकता कि एक बीमार है और उसके विषाणु दूसरों को न लगें। ये सब कहके मत पिंड छुड़ा लिया करो कि ये उसका अपना व्यक्तिगत मसला है। वो तो हैं ही ऐसे। साहब ज़रा गुस्सैल हैं। साहब ज़रा गुस्सैल नहीं हैं, पूरा घर नर्क है। और ये बात हम बड़े सम्मान के साथ कहते हैं कि देखिए उनका तो स्वभाव ही ज़रा तेज़ है। 

प्रश्न: फिर उन्हें रास्ते पर कैसे लेकर आएँ?

उत्तर: उनसे कहिए कि तुम ठीक रास्ते पर नहीं आते तो हम ठीक रास्ते पर चलेंगे। उन्हें कैसे पता चलेगा कि उनका रास्ता ठीक नहीं है जब जो भी उनका रास्ता है आप उनके पीछे पीछे ही चले जा रहे हों। पहले आप दिखाओ कि ठीक रास्ते के प्रति आपकी निष्ठा है। और ऐसा नहीं होता है कि घर में एक व्यक्ति के मन की स्थिति बाकियों के मन की स्थिति से बिलकुल भिन्न हो। अगर एक आदमी ऐसा है कि जो क्रोध और कामना में बिलकुल लिपटा हुआ है तो घर का माहौल ही ऐसा होगा कि जिसमें क्रोध और कामना खूब हैं। वो पूरा माहौल ही बदलना पड़ेगा। उस माहौल से किसी एक पर ज़्यादा असर पड़ गया है, किसी एक पर कम असर हुआ है, लेकिन माहौल है तो ऐसा ही सबके लिए। वो पूरा माहौल ही बदल डालिए। 

हो सकता है ऐसा कि टीवी चलता हो, एक आदमी बिलकुल लगातार देखता हो पकड़ करके और बाकी उतना लगातार न देखते हों, पर टीवी चलता है तो आवाज़ तो पूरी घर में पहुँचती है न? या ऐसा है कि बाकी लोग अप्रभावित रह जाएँगे? माँ-बाप लड़ते हों तो ठीक है, लड़ने वाले जन दो ही हैं, पर असर बाकी के पाँच-सात जनों पर पड़ेगा कि नहीं? चाचा-चाची, दादा-दादी, बच्चे, जो भी हैं घर में। पूरा माहौल ही बदलना पड़ेगा।