Tuesday, June 30, 2015

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ के कुछ उदाहरण -2

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ के कुछ उदाहरण. भाग-2. 1212 1122 1212 22

(11)

نتیجہ ایک سا نکلا دماغ اور دل کا
کہ دونوں ہار گئے امتحاں میں دنیا کے
                                                          اعجاز گل

नतीजा एक सा निकला दिमाग़ और दिल का
कि दोनो हार गए इम्तिहाँ में दुनिया के
                                                                                                        एजाज़ गुल

(12)
نہیں ضرور کہ مر جائیں جاں نثار تیرے
یہی ہے موت کہ جینا حرام ہو جائے

नहीं ज़रूर कि मर जाएँ जाँ-निसार तेरे
यही है मौत कि जीना हराम हो जाए
                                                             फ़ानी बदायुनी

(13)

یہ دل عجیب ہے اکثر کمال کرتا ہے
جواب جن کا نہیں وہ سوال کرتا ہے

ये दिल अजीब है अक्सर सवाल करता है
जवाब जिन का नहीं वो सवाल करता है
                                         - पिन्हान

(14)
ابھی تو چاک پہ جاری ہے رقص مٹی کا
ابھی کمہار کی نییت بدل بھی سکتی ہے

अभी तो चाक पे जारी है रक़्स मिट्टी का,
अभी कुम्हार की नीयत बदल भी सकती है
                                               - अलीना इतरत

(15)
ہزاروں کام محبت میں ہیں مزے کے داغؔ
جو لوگ کچھ نہیں کرتے کمال کرتے ہیں

हज़ारों काम मुहब्बत में हैं मज़े के "दाग़"
जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं
                                             - दाग़ दहलवी

(16)
بس اک جھجک ہے یہی حال دل سنانے میں
کہ تیرا ذکر بھی آئے گا اس فسانے میں

बस इक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में
कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में
                                                                                                  - कैफ़ी आज़मी

(17)
غم زمانہ تری ظلمتیں ہی کیا کم تھیں
کہ بڑھ چلے ہیں اب ان گیسوؤں کے بھی سائے

ग़म-ए-ज़माना तिरी ज़ुल्मतें ही क्या कम थीं
कि बढ़ चले हैं अब इन गेसुओं के भी साए
                                                      - हाफ़िज़ होशियारपुरी

(18)
نہیں نگاہ میں منزل تو جستجو ہی سہی
نہیں وصال میسر تو آرزو ہی سہی

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
                                                  - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

(19)
کسی کو اپنے عمل کا حساب کیا دیتے
سوال سارے غلت تھے جواب کیا دیتے

किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते
                                             - मुनीर नियाज़ी

(20)

وہ لوگ جن سے تری بزم میں تھے ہنگامے
گئے تو کیا تری بزم خیال سے بھی گئے

वो लोग जिन से तेरी बज़्म में थे हंगामे
गए...तो क्या तेरी बज़्म-ए-ख़याल से भी गए
                                                      - अज़ीज़ हामिद मदनी

Monday, June 29, 2015

सुरेश नीरव जी की एक हास्य ग़ज़ल

सभ्यता के नाम पर जब गालियां बिकने लगीं
योग्यता के नाम पर भी डिग्रियां बिकने लगीं।

भीख में मिलती नहीं है दाद आख़िर क्या करें
अब बड़े मंचों पे यारो तालियां बिकने लगीं।

छंद,ग़ज़लें,गीत,दोहे मांगकर लाए हैं लोग
शाइरी अब क्या करें कव्वालियां बिकने लगीं।

कुछ वकील औ डॉक्टर,इंजीनियर काग़ज़ पे हैं
पान की दूकान पर अब डिग्रियां बिकने लगीं।

चाट खाने के लिए कुछ गोलगप्पों के एवज
घर के साले तो बिके थे,सालियां बिकने लगीं।

मुद्दई फर्ज़ी बना है और जाली है वकील
भेड़ के बदले में अब तो बकरियां बिकने लगीं।

बिक रहा है अब दुकानों पर पुराना ‘रोल्डगोल्ड’
जिनकी कुछ कीमत न थी वो बालियां बिकने लगीं।

जो पुराने लोग थे ‘नीरव’ वो अब सड़कों पे हैं
पहले लोटे बिक गए अब थालियां बिकने लगीं।

-पंडित सुरेश नीरव

Thursday, June 25, 2015

नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया (मीराजी)

नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया

कैसे दिन थे कैसी रातें,कैसी बातें-घातें थी 
मन बालक है पहले प्यार का सुन्दर सपना भूल गया 

सूझ-बूझ की बात नहीं है मनमोहन है मस्ताना 
लहर लहर से जा सर पटका सागर गहरा भूल गया 

अपनी बीती जग बीती है जब से दिल ने जान लिया
हँसते हँसते जीवन बीता रोना धोना भूल गया

अँधिआरे से एक किरन ने झाँक के देखा, शरमाई
धुँध सी छब तो याद रही कैसा था चेहरा भूल गया

हँसी हँसी में खेल खेल में बात की बात में रंग गया
दिल भी होते होते आख़िर घाव का रिसना भूल गया

एक नज़र की एक ही पल की बात है डोरी साँसों की
एक नज़र का नूर मिटा जब एक पल बीता भूल गया

जिस को देखो उस के दिल में शिकवा है तो इतना है
हमें तो सब कुछ याद रहा पर हम को ज़माना भूल गया

कोई कहे ये किस ने कहा था कह दो जो कुछ जी में है
“मीराजी” कह कर पछताया और फिर कहना भूल गया

(मीराजी)

Wednesday, June 24, 2015

मज़ारिअ मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ मक़्सूर महज़ूफ़ छंद के कुछ उदाहरण - 2

मज़ारिअ मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ मक़्सूर महज़ूफ़ छंद के कुछ ओर उदाहरण. 
221 2121 1221 212, ગાગાલ ગાલગાલ લગાગાલ ગાલગા
(11)
छोड़ा न रश्क ने कि तेरे घर का नाम लूँ
हर इक से पूछता हूँ कि जाऊं किधर को मैं
                                                                        - ग़ालिब

(12)
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं,
सामान सौ बरस के हैं कल की ख़बर नहीं
                                                                      (हैरत इलाहाबादी)

(13)
ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया 
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
                                                               (जावेद अख़्तर)

(14)
पैनी निगाह रख चले थे हर जगह मगर,
भूले तो भूले खुद के ग़िरेबाँ में झाँकना
                                                                  (निहाल महताब)

(15)
जो ज़िंदगी की सख़्त हकीकत से डर गये,
वो लोग अपनी मौत से पहले ही मर गये
                                                                                                              (नामालूम)

(16)
اپنی تباہیوں کا مجھے کوئی غم نہیں
تم نے کسی کے ساتھ محبت نبھا تو دی


अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं
तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी
                                                                                               (साहिर लुधियानवी)

(17)
کہہ دو ان حسرتوں سے کہیں اور جا بسیں
اتنی جگہ کہاں ہے دل داغ دار میں

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में
                                                                                                    (बहादुरशाह ज़फ़र)

(18)
دیکھیں قریب سے بھی تو اچھا دکھائی دے
اک آدمی تو شہر میں ایسا دکھائی دے

देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
एक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे
                                                                                                         ज़फ़र गोरखपुरी

(19)
جینا بھی آ گیا مجھے مرنا بھی آ گیا
پہچاننے لگا ہوں تمہاری نظر کو میں

जीना भी आ गया मुझे मरना भी आ गया
पहचानने लगा हूँ तुम्हारी नज़र को मैं
                                                                                                        असग़र गोंडवी

(20)
اک یاد رہ گئی ہے مگر وہ بھی کم نہیں
اک درد رہ گیا ہے سو رکھنا سنبھال کر

इक याद रह गई है मगर वो भी कम नहीं
इक दर्द रह गया है सो रखना सँभाल कर
                                                          - मोहम्मद अल्वी

Tuesday, June 23, 2015

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी (जावेद अख़्तर)

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी 
प्यार की राह के हमसफ़र
किस तरह बन गये अजनबी 
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी 
फूल क्यूँ सारे मुरझा गये 
किस लिये बुझ गई चाँदनी 
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी 

कल जो बाहों में थी 
और निगाहों में थी 
अब वो गर्मी कहाँ खो गई
न वो अंदाज़ है 
न वो आवाज़ है 
अब वो नर्मी कहाँ खो गई 
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी 

बेवफ़ा तुम नहीं 
बेवफ़ा हम नहीं 
फिर वो जज़्बात क्यों सो गये 
प्यार तुम को भी है 
प्यार हम को भी है 
फ़ासले फिर ये क्या हो गये
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

(जावेद अख़्तर)

तुमको देखा तो ये ख़याल आया (जावेद अख़्तर)

तुमको देखा तो ये ख़याल आया 
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया 

आज फिर दिल ने एक तमन्ना की 
आज फिर दिल को हमने समझाया 

तुम चले जाओगे तो सोचेंगे 
हमने क्या खोया, हमने क्या पाया

हम जिसे गुनगुना नहीं सकते 
वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया

(जावेद अख़्तर)


क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए (जावेद अख़्तर)


क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए 
इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए 

ऐसा नहीं कि हमको कोई भी खुशी नहीं 
लेकिन ये ज़िन्दगी तो कोई ज़िन्दगी नहीं 
क्यों इसके फ़ैसले हमें मंज़ूर हो गए 

पाया तुम्हें तो हमको लगा तुमको खो दिया 
हम दिल पे रोए और ये दिल हम पे रो दिया 
पलकों से ख़्वाब क्यों गिरे क्यों चूर हो गए

(जावेद अख़्तर)


ये तेरा घर ये मेरा घर (जावेद अख़्तर)

ये तेरा घर ये मेरा घर, किसी को देखना हो गर 
तो पहले आके माँग ले, मेरी नज़र तेरी नज़र 
ये घर बहुत हसीन है

न बादलों की छाँव में, न चाँदनी के गाँव में 
न फूल जैसे रास्ते, बने हैं इसके वास्ते 
मगर ये घर अजीब है, ज़मीन के क़रीब है 
ये ईँट पत्थरों का घर, हमारी हसरतों का घर 

जो चाँदनी नहीं तो क्या, ये रोशनी है प्यार की 
दिलों के फूल खिल गये, तो फ़िक्र क्या बहार की 
हमारे घर ना आयेगी, कभी ख़ुशी उधार की 
हमारी राहतों का घर, हमारी चाहतों का घर 

यहाँ महक वफ़ाओं की है, क़हक़हों के रंग है 
ये घर तुम्हारा ख़्वाब है, ये घर मेरी उमंग है 
न आरज़ू पे क़ैद है, न हौसले पर जंग है 
हमारे हौसले का घर, हमारी हिम्मतों का घर

(जावेद अख़्तर)

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा (मुहम्मद इक़बाल)

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा

ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं, उसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिनके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा

'इक़बाल' कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा

(मुहम्मद इक़बाल)

चले जाना जरा ठहरो किसी का दम निकलता है (हसरत जयपुरी)

चले जाना जरा ठहरो किसी का दम निकलता है
ये मंज़र देखकर जाना
चले जाना जरा ठहरो किसी का दम निकलता है
ये मंज़र देखकर जाना

चले जाना जरा ठहरो किसी का दम निकलता है
ये मंज़र देखकर जाना चले जाना

अभी आये हो बैठो तो ये मौसम भी सुहाना है (2)
अभी तो हाल-ए-दिल तुमको निगाहों से सुनाना है 
नज़र प्यासी ये दिल प्यासा, किसी का दम निकलता है
ये मंज़र देखकर जाना चले जाना

हसीन झरनों के साये में अकेला छोड़ जाते हो (2)
हमारे दिल को आख़िर किस लिए तुम तोड़ जाते हो
जरा दम लो कहा मानो, किसी का दम निकलता है
ये मंज़र देखकर जाना चले जाना

हमारी जान हो तुम भी अगर चल दिन तो फिर क्या है (2)
तुम्हारे बिन बहारो में खुशी क्या है मज़ा क्या है
ओ जानेमन न जाओ तुम, किसी का दम निकलता है
ये मंज़र देखकर जाना चले जाना

कसम खाती हूँ मैं अपनी तुम्हे अब ना सताउंगी (2)
तुम्हारी बात जो भी हो वही मैं मान जाउंगी
भरी आँखें रुकी साँसे, किसी का दम निकलता है
ये मंज़र देखकर जाना 
चले जाना जरा ठहरो किसी का दम निकलता है
ये मंज़र देखकर जाना

चले जाना जरा ठहरो किसी का दम निकलता है
ये मंज़र देखकर जाना चले जाना

Film: Around the World (1967)
Singers: Mukesh, Sharada
Music Director: Shankar Jaikishan
Lyricist: Hasrat Jaypuri

या तो कुबूल कर मेरी कमजोरियों के साथ (दीक्षित दनकौरी)

या तो कुबूल कर मेरी कमजोरियों के साथ
या छोड़ दे मुझे मेरी तन्हाइयों के साथ

लाज़िम नहीं कि हर कोई हो कामियाब ही
जीना भी सीख लीजिए नाकामियों के साथ

(दीक्षित दनकौरी)

11 ગુરુની બહરના ઉદાહરણો

मेरा मुस्तक़बिल तय करने आए हैं 
सन्नाटे फिर घर को भरने आए हैं 
                                                                                            -पूनम 'पूनम'
                                                                   
                                                                  *    *    *    *    *    *
अच्छी -अच्छी बात करें, आ होली में 
'चैटिंग' पूरी रात करें, आ होली में

रंगों की बौछारें तो ना'मुमकिन हैं 
'लाइक' की बरसात करें, आ होली में
                                                    -दीक्षित दनकौरी

बहरे रमल मुसद्दस सालिम के कुछ उदाहरण (2122 2122 2122)

बहरे रमल मुसद्दस सालिम के कुछ उदाहरण (2122 2122 2122)

(1)
रख लिया है तीर ज़ालिम ने कमां पर 
देखना ये है, निशाना है कहां पर
                                                   -दीक्षित दनकौरी 

(2)
ગોદડી ઓઢું ને આવે ઊંઘ સારી,
એક એમાં છે હજી મા સાડી તારી
                                               - મગન મંગલપંથી

बहरे हजज़ मुसमन अख़रब के कुछ उदाहरण

बहरे हजज़ मुसमन अख़रब के कुछ उदाहरण (221 1221 1221 122, ગાગાલ લગાગાલ લગાગાલ લગાગા)
(1)
आंखों में चराग़ों के उजाले न रहेंगे 
आ जाओ के फिर देखने वाले न रहेंगे
                                                           - ख़ुमार बाराबंकी

(2)

رستہ بھی کٹھن دھوپ میں شدت بھی بہت تھی
سائے سے مگر اس کو محبت بھی بہت تھی

रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी
साए से मगर उस को मोहब्बत भी बहुत थी
                                                   - परवीन शाक़िर

(3)
دل کو تری چاہت پہ بھروسہ بھی بہت ہے
اور تجھ سے بچھڑ جانے کا ڈر بھی نہیں جاتا

दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
                                                 - अहमद फ़राज़

(4)
بےنام سے اک خوف سے دل کیوں ہے پریشاں
جب طے یے کہ کچھ وقت سے پہلے نہی ہوگا

बेनाम से इक ख़ौफ़ से दिल क्यूँ है परेशाँ
जब तय है कि कुछ वक़्त से पहले नहीं होगा
                                                 - अख़लाक़ ख़ान शहरयार

(5)

आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो
नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है

آنکھیں جو اٹھائے تو محبت کا گماں ہو
نظروں کو جھکائے تو شکایت سی لگے ہے
                                                    - जां निसार अख़्तर

(6)

تنہائی میں کرنی تو ہی اک بات کسی سے
لیکن وہ کسی وقت اکیلا نہیں ہوتا

तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
लेकिन वो किसी भी वक़्त अकेला नहीं होता
                                                            - अहमद मुश्ताक़

(7)

شوخی سے ٹھہرتی نہیں قاتل کی نظر آج
یہ برق بلا دیکھیے گرتی ہے کدھر آج

शोख़ी से ठहरती नहीं क़ातिल की नज़र आज
ये बर्क़-ए-बला देखिए गिरती है किधर आज
                                                                   - दाग़ दहलवी
(8)

محفل میں مرے ذکر کے آتے ہی اٹھے وہ
رسوائے محبت کا یہ اعجاز تو دیکھو

महफ़िल में मिरे ज़िक्र के आते ही उठे वो
रुस्वा-ए-मोहब्बत का ये एजाज़ तो देखो
                                                  - मोमिन ख़ाँ मोमिन

(9)
پتھر مجھے کہتا ہے مرا چاہنے والا  
میں موم ہوں اس نے مجھے چھو کر نہیں دیکھا

पत्थर कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छू कर नहीं देखा
                                           - बशीर बद्र

(10)
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा, तेरे पीछे
तू देख कि क्या रँग है तेरा, मेरे आगे
                                                - ग़ालिब

मुतदारिक बहर के कुछ उदाहरण (212 212 212 212)

मुतदारिक बहर के कुछ उदाहरण (212 212 212 212). ગાલગા ગાલગા ગાલગા ગાલગા

(1)
आप क्यों हैं ख़फ़ा, कुछ पता तो चले 
मेरी क्या है ख़ता, कुछ पता तो चले

मैं तो राज़ी हूं तेरी रज़ा में, मगर
तेरी क्या है रज़ा,कुछ पता तो चले
                                                 - दीक्षित दनकौरी

(2)
રોજ એને ઉડાડો, ફરી આવશે,
કોણે રોપી, કબૂતરમાં આ લાગણી?
                                        - સુનીલ શાહ

8 ગુરુની બહરના ઉદાહરણો

तू भी औरों जैसा निकला 
क्या-क्या सोचा था,क्या निकला
                                                                                            -दीक्षित दनकौरी

सीख गई हूँ दुनियादारी 
मैं भी तेवर बदल रही हूँ
                                          -मीरा हिंगोरानी

राज दिलों पर करता हूँ मैं,
सरकारी सम्मान नहीं हूँ
                                          - दीक्षित दनकौरी

चुप रह कर भी देख लिया (दीक्षित दनकौरी)

चुप रह कर भी देख लिया 
ये नश्तर भी देख लिया

अब किस से उम्मीद रखूं 
तेरा दर भी देख लिया
                                             - दीक्षित दनकौरी

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ के कुछ उदाहरण

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ के कुछ उदाहरण (1222 1222 122, લગાગાગા લગાગાગા લગાગા)
(1)
જતાં ને આવતાં મારે જ રસ્તે,
બની પથ્થર, હું પોતાને નડ્યો છું
                                                   (શયદા)
(2)
न जाने क्या सहा है रौशनी ने
चराग़ों से बग़ावत कर रही है
                                                   - दीक्षित दनकौरी
(3)
کسے پانے کی خواہش ہے کہ ساجدؔ
میں رفتہ رفتہ خود کو کھو رہا ہوں

किसे पाने की ख़्वाहिश है कि 'साजिद',
मैं रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को खो रहा हूँ
                            - ऐतबार साजिद

पसारूँ हाथ क्यों आगे किसी के? (दीक्षित दनकौरी)

1222 1222 122 (લગાગાગા લગાગાગા લગાગા)

पसारूँ हाथ क्यों आगे किसी के?
तरीक़े और भी है ख़ुदकुशी के

उजालों ने तो बस तोहमत लगाई
करम हम पर रहे हैं तीरगी के

अधूरे ही सफ़र से लौट आए
कहाँ तक साथ चलते अजनबी के

ग़नीमत है कि तिनका मिल गया था
नहीं तो खो गए होते कभी के

तवक़्क़ो सबसे रखता है मदद की
कभी तो काम आ तू भी किसी के

(दीक्षित दनकौरी)

Friday, June 19, 2015

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता (दुष्यंत कुमार)


मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे
इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आएँगे|

हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेड़ो मत
हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आएँगे|

थोडी आँच बची रहने दो थोडा धुँआ निकलने दो
तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफिर आएँगे

उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती
वे आए तो यहाँ शंख सीपियाँ उठाने आएँगे|

फिर अतीत के चक्रवात में दृष्टि न उलझा लेना तुम
अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आएँगे|

रह-रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
आगे और बढे तो शायद दृश्य सुहाने आएँगे|

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे|

हम क्यों बोलें इस आँधी में कई घरौंदे टूट गये
इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जयेंगे|

हम इतिहास नहीं रच पाये इस पीडा में दहते हैं
अब जो धारायें पकडेंगे इसी मुहाने आएँगे|

तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे (निदा फ़ाज़ली)

तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे 
जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे

तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं 
देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे

बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो 
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे

किन राहों से दूर है मंज़िल कौन सा रस्ता आसाँ है
हम जब थक कर रुक जायेंगे औरों को समझायेंगे

अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हो मुमकिन है 
हम तो उस दिन रो देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे

(निदा फ़ाज़ली)

Tuesday, June 16, 2015

મારા કેટલાંક છૂટક શેર

એમનો ઉત્તર ન આવ્યો, મેં કશું પૂછ્યું નહીં,
આંખમાં આવી ગયેલાં આંસુને લૂછ્યું નહીં.

*      *      *     *     *

કેન્દ્રબિંદુ હોય છે ક્યાં ને અસર ક્યાં ક્યાં થતી?
દિલ મહીં ભૂકંપથી કંઈ કમ તબાહી થાય છે?

*      *      *     *     *

બધાં કરતાં રહ્યાં દાવો મને ઓળખતાં હોવાનો,
બધાં ભૂલી ગયાં કે હું જ મારાથી અજાણ્યો છું!

*      *      *     *     *

કરપીણ સ્વપ્ન જોયું હશે કોઇ રાતમાં,
લાલાશ ઊતરે તો નહીં આમ આંખમાં.

*      *      *     *     *

લાગણી પણ એંઠ તો થાય,
હદથી વધુ જો પીરસો પ્રેમ!

                                                                  *      *      *     *     *

ધારી'તી એક વાત મનોમન,
શી રીતે પ્હોંચી કાનોકાન?

                                                                 *      *      *     *     *

ભરીને જીવું છું જ્વાળામુખી મારા હૃદયમાં હું,
બળેલો જીવ છું કોઇને શાતા દઈ નથી શકતો!

*      *      *     *     *

પિંજરમાં આકાશ મળ્યું છે ઊડવા માટે,
આસપાસ પહેરો છે લોખંડી સળિયાનો!

*      *      *     *     *

નવો આજનો આ જમાનો નવો અહીંનો દસ્તૂર છે,
કરાવે નશામુક્ત એ ખુદ નશામાં થયા ચૂર છે.

*      *      *     *     *

મહાવરો જ કર્યો છે હજી તો ઉડ્ડયનનો,
કવાયતો શરૂ થઈ ગઈ છે પાંખો કાપવાની!

*      *      *     *     *

ઘણી વેળા ખરેખર એમ લાગે છે કે ભગવન બહુ જ વાંકો છે,
પછી એવું જણાતું કે મને સીધા હોવાનો વ્યર્થ ફાંકો છે!

                                                                  *      *      *     *     *

થયો છે સવાલોનો ફરીથી શરૂ મારો, 
જવાબો દીધા વિના નથી કોઇ પણ આરો!

                                                                *      *      *     *     *

બધી જગ્યાએ તારું શરમાળપણું તું અકબંધ રાખે છે, 
પાછી ફરિયાદ કરે કે કોઇ મારાથી ન સંબંધ રાખે છે!

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून के कुछ उदाहरण-1

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून के कुछ उदाहरण-1. 2122 1212 22. ગાલગાગા લગાલગા ગાગા.
(1)
بندگی ہم نے چھوڑ دی ہے فرازؔ
کیا کریں لوگ جب خدا ہو جائیں

बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
                                                                                                   अहमद फ़राज़

(2)
या इलाही वो पार लग जाएं 
डूबते वक़्त कह गया कोई
                                                                                           - दीक्षित दनकौरी

(3)
तू ने देखा नहीं तेरे दर से 
लौटकर किस तरह गया कोई
                                                                                         - दीक्षित दनकौरी
                                                                                 (4)
आइना जब यक़ीन का टूटा 
वो उधर, और में इधर टूटी 
                                                                                           -सारिका त्यागी

(5)
चुप न रहती तो और क्या करती 
ख़ुद को रुसवा, उसे ख़फ़ा करती 
                                                                                        - अलका मिश्रा 'कशिश'

(6)
याद आती है तेरी,जब-जब भी
ग़म की रंगत निखार देती है
                                                      - दीक्षित दनकौरी
(7)
تم مہبت کو کھیل کہتے ہو
ہم نے برباد زںدگی کر لی

तुम मोहब्बत को खेल कहते हो,
हम ने बर्बाद ज़िन्दगी कर ली
                                             - बशीर बद्र

(8)
सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर
अब किसे रात भर जगाती है
                                      जौन एलिया

سوچتا ہوں کہ اس کی یاد آخر
اب کسے رات بھر جگاتی ہے

(9)
تم محبت کو کھیل کہتے ہو
ہم نے برباد زندگی کر لی

तुम मोहब्बत को खेल कहते हो,
हमने बर्बाद ज़िंदगी कर ली,
                                     बशीर बद्र

(10)
آدمی آدمی سے ملتا ہے
دل مگر کم کسی سے ملیتا ہے

आदमी आदमी से मिलता है,
दिल मगर कम किसी से मिलता है
                                       - जिगर मुरादाबादी

Monday, June 15, 2015

चुटकी भर सीखा, धरती भर है बाक़ी (अशोक चक्रधर)

जो सीखा चुटकी भर सीखा, धरती भर है बाक़ी,
उस पर अहंकार दिखलाना, है ये सीख कहां की?

इल्मों के मैख़ानें से जितना चाहो पी डालो,
हर दम रहता खुला और हर पल तत्पर है साकी!
                                                                                      (अशोक चक्रधर)

Monday, June 8, 2015

एक ग़ज़ल: कमलेश भट्ट 'कमल'

चेहरे पर ख़ामोशी लेकिन मन में हलचल है 
तुम क्या जानोगे मुझमें कितना कोलाहल है ।

जंगल से बाहर आए तो अरसा बीत गया 
इंसानों में फिर भी बाक़ी कितना जंगल है ।

जाने कैसे उग आते हैं काँटे उस दिल में 
जो दिल अपनी संरचना में बेहद कोमल है ।

टुकड़े-टुकड़े में देखा है तुमने जीवन को 
वर्ना जान ही जाते कौन सफल या असफल है ।

गुपचुप राह बना लेती है चिंता भीतर तक
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कैसी साँकल है ।

जाने कितनी तन की बस्ती झुलसा डालेगा
लोगों के मन के जंगल का जो दावानल है ।

हममें भी उतना ही जीवन शेष बचा समझो 
गंगा में जितना भी बाक़ी अब गंगाजल है ।

                                                                 - कमलेश भट्ट 'कमल'